हैराँ नहीं हम आपकी हसरत-ए -खिदमत सुनकर...
कौन दुकानदार ग्राहकों से ज़िक्र-ए-मुनाफा करता है !
मिल भी जाए फिर भी हुकूमत, तो बेवकूफ़ी न समझना...
मुमकिन है कि आपकी नीयत को मौका एक और हो !!
कौन दुकानदार ग्राहकों से ज़िक्र-ए-मुनाफा करता है !
मिल भी जाए फिर भी हुकूमत, तो बेवकूफ़ी न समझना...
मुमकिन है कि आपकी नीयत को मौका एक और हो !!